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करतारपुर साहिब का जिक्र कर PM Modi ने खेला बड़ा जुआ, क्या 1971 के युद्ध के बाद भारत ने खो दिया बड़ा मौका?

21 Jun 2024 1679 Views
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लोकसभा चुनाव के छठे चरण की वोटिंग से पहले बीजेपी और कांग्रेस के नेता पंजाब और हरियाणा में घुस गए हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने पंजाब में अपनी पहली रैली में करतारपुर साहिब का जिक्र कर कांग्रेस को घेरा. उन्होंने दावा किया कि अगर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पीएम वहां होते तो करतारपुर साहिब भारत का हिस्सा होता. उन्होंने अपने एक बयान से दो निशाने साधे.

पटियाला की रैली में पीएम नरेंद्र मोदी ने सिख वोटरों के नब्ज पर हाथ रखने की कोशिश की। उन्होंने रैली में करतारपुर कॉरिडोर को भारत में नहीं होने पर अफसोस जाहिर किया। पीएम मोदी ने लोगों को याद दिलाई कि अगर 1971 के युद्ध में विजयी होने के बाद तत्कालीन कांग्रेस की सरकार मोलतोल करती तो करतारपुर साहिब भारत का हिस्सा होता। उन्होंने कहा कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में 90 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। अगर उस दौर में वह सत्ता में होते तो पाकिस्तानी सैनिकों की रिहाई से पहले करतारपुर साहिब ले लेते।


1971 के युद्ध में जीत के बाद भी भारत की नासूर बनी रही

पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों से तंग आकर 1970 के दशक की शुरुआत में पूर्वी पाकिस्तान से शरणार्थी भारत आने लगे। इस बीच अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान की मुक्ति वाहिनी ने अलग बांग्लादेश की मांग को लेकर पाकिस्तानी सेना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. शरणार्थियों की बढ़ती संख्या के बाद भारत ने हस्तक्षेप किया और पाकिस्तान ने युद्ध की घोषणा कर दी. दिसंबर 1971 में 13 दिनों तक संघर्ष चला। भारतीय सेना ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों और रजाकारों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया।

16 दिसंबर को, जनरल नियाज़ी ने आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए और विदेशी सैनिकों के आगमन से नए बांग्लादेश का जन्म हुआ। करीब छह महीने बाद 2 जुलाई 1972 को भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच बातचीत हुई. जीत के बाद भी भारत ने सितंबर 1971 में नियंत्रण रेखा की स्थिति बताई। यह भी निर्णय लिया गया कि कुल मिलाकर दोनों देशों के सभी मामले एक-दूसरे से बिना किसी संबंध के जुड़े रहेंगे।

माना जाता है कि इस एकांकी नाटक में भारत ने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी, जिससे पाकिस्तान की किरकिरी हो. इस धर्मग्रन्थ को ईसा मसीह से दूर रखा गया था। मोदी ने इस खामी के जरिए रामपुर साहिब का जिक्र करने की दो कोशिशें कीं। पहला सिख वोटरों को और दूसरा कांग्रेस को किनारे करने की कोशिश की गई.


सिख वोटरों का समर्थन ही बीजेपी को पंजाब में चखाएगी जीत का स्वाद

पंजाब के 13वें विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी पहली बार अकेले चुनाव लड़ रही है. इसके चलते पंजाब की ज्यादातर फ्रेंचाइजियों को चौतरफा प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। 1998 से 2019 तक पार्टी ने शिरोमणि अकाली दल के साथ विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ा। गठबंधन में बीजेपी के 4 तीर्थ थे. 2004 में बीजेपी के पास सबसे ज्यादा 3 न्यूनतम उम्मीदवार थे. सउदीपुर, गुरदासपुर और अमृतसर में बीजेपी की दिलचस्प जीत. 2009 में बीजेपी को सिर्फ एक सीट और 10 फीसदी वोट मिले थे.

अकादी दल के नाम से अलग होने के बाद वोटर को सीख देने की परंपरा बीजेपी से छुप गई है. 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ दो वोट और 6.6 फीसदी वोट मिले. आस्था की पार्टी होने के जाल से बाहर आने के लिए बीजेपी ने इस चुनाव से पहले अकादी दल, कांग्रेस और आप के सिख नेताओं को भी पार्टी में शामिल किया. महिलाओं के दस्तावेज़ में तीन सिफ़ारिशों पर मुहर लगाई गई है. अभी तक टेलीकॉम में बिटकॉइन हैं, लेकिन जीतने के लिए 10 फीसदी से ज्यादा की जरूरत होगी.


गुरु नानकदेव जी से जुड़ा है करतारपुर साहिब, 2019 में खुला था कॉरिडोर

एक अनुमान के मुताबिक पंजाब की 57.69 फीसदी आबादी सिखों की है. राज्य में 38.49 फीसदी हिंदू और 1.93 फीसदी मुस्लिम आबादी है. पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर कुल 2 करोड़ 14 लाख 61 हजार 739 मतदाता हैं. मतदाताओं के अनुपात की गणना भी जनसंख्या के अनुसार की जाती है। इस लिहाज से सभी सीटों पर सिख मतदाताओं का फैसला अंतिम होता है. अब वोटिंग से पहले सिख वोटरों का समर्थन पाने के लिए पीएम मोदी ने करतारपुर साहिब का मुद्दा उठाया है.

करतारपुर साहिब सिख समुदाय की भावनाओं से जुड़ा है, क्योंकि वहां गुरु नानकदेव जी ने अपनी जिंदगी का अंतिम 16 साल बिताए थे। 1947 में देश के बंटवारे के बाद यह पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। वहां जाने के लिए श्रद्धालुओं को वीजा और पासपोर्ट की कानूनी औपचारिकता पूरी करनी पड़ती थी। नवंबर 2019 के पहले तक श्रद्धालु डेरा बाबा नानक से दूरबीन के जरिये करतारपुर साहिब का दर्शन करते थे। 

2019 में भारत और पाकिस्तान के बीच कॉरिडोर खोलने और बिना वीजा एंट्री पर सहमति बनी। समझौते के मुताबिक, करीब पांच हजार श्रद्धालु रोजाना डेरा बाबा नानक से गुरुद्वारा दरबार साहिब दर्शन करने जा सकते हैं। कोरोना के दौर में करीब 20 महीने तक कॉरिडोर बंद भी रहा।


writer : Aman